पण्डुपलासोव दानिसि, यमपुरिसापि च ते उपट्ठिता
उय्योगमुखे च तिट्ठसि, पाथेय्यम्पि च ते न विज्जति.
हिंदी: अरे उपासक! पीले पत्ते के समान इस समय तू है, यमदूत तेरे पास खड़े हैं, तू प्रयाण के लिए तैयार है और कुशल कर्मों का पाथेय (रास्ते की खुराक) तेरे पास कुछ नहीं है.
सो करोहि दीपमत्तनो, खिप्पं वायम पण्डितो भव
निद्धन्तमलो अंङ्गणो, दिब्बं अरियभूमिं उपेहिसि.
हिंदी: सो तू अपने द्वीप बना, शीघ्र ही साधना का अभ्यास कर पंडित हो जा. तू मल का प्रक्षालन कर, निर्मल बन, दिव्य आर्यभूमि (पांच प्रकार की शुद्धावास भूमि) को पा लेगा.
उपनीतवयो च दानिसि, सम्पयातोसि यमस्स सन्तिके
वासो ते नत्थि अन्तरा, पाथेय्यम्पि च ते न विज्जति.
हिंदी: अब तेरी आयु समाप्त हो चुकी है, तू यम्के निकट पहुँच गया है, बीच में तेरा कोई ठीकाना भी नहीं है और न ही तेरे पास कोई पाथेय है.
सो करोहि दीपमत्तनो, खिप्पं वायम पण्डितो भव
निद्धन्तमलो अंङ्गणो, न पुनं जातिजरं उपेहिसि.
हिंदी: सो तू अपने लिए द्वीप बना, शीघ्र ही साधना का अभ्यास कर पंडित हो जा. तू मल का प्रक्षालन कर, निर्मल बन, पुन: जन्म, जरा (रोग तथा मृत्यु) के बंधन में नहीं पड़ेगा.
अनुपुब्बेन मेधावी, थोकं थोकं खणे खणे
कम्मारो रजतस्सेव, निद्धमे मलमत्तनो.
हिंदी: समझदार व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने मैल क क्रमश: थोड़ा-थोड़ा क्षण-प्रतिक्षण वैसे ही दूर करे जैसे कि सुनार चांदी के मैल को दूर करता है.
अयसाव मलं समुट्ठितं, तदुट्ठाय तमेव खादति
एवं अतिधोनचारिनं, सानि कम्मानिनयन्ति दुग्गतिं.
हिंदी: जैए लौहे के ऊपर उठा हुआ मल (जंग) उसी पर उठकर उसी को खाता है, वैसे ही मर्यादा का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति के अपने ही कर्म उसे दुर्गति की ओर ले जाते हैं.
असज्झायमला मन्ता, अनुट्ठानमला घरा
मलं वण्णस्स कोसज्जं, पमादो रक्खतो मलं.
हिंदी: स्वाध्याय न करना परियत्ति का मल है, मरम्मत न करना घरों का मल है, आलस्य सौंदर्य का मल है और प्रमाद प्रहरी का मल है.
मलित्थिया दुच्चरितं, मच्छेरं ददतो मलं
मला वे पापकाधम्मा, अस्मिं लोके परम्हि च.
हिंदी: दुश्चरित्र होना स्त्री का मल है, कृपणता दाता का मल है और पापपूर्ण धम्म इहलोक और परलोक के मल हैं.
सुजीवं अहिरिकेन, काकसूरेन धंसिना
पक्खन्दिना पगब्भेन, संकिलिट्ठेन जीवितं.
हिंदी: पापाचार के परति निर्लज्ज, कौवे के समान छीनने में शूर, परहित विनाशी, आत्मश्लाघी (शेखीखोर, बड़बोल), दु:साहसी, मलिन पुरुष का जीवन सुखपूर्वक बीतता हुआ देखा जाता है.
हिरीमता च दुज्जीवं, निच्चं सुचिगवेसिना
अलीनेनाप्पगब्भेन, सुद्धाजीवेन पस्सता.
हिंदी: पापाचार के प्रति लजालु, नित्य पवित्रता का ध्यान रखने वाले, अप्रमादी, अनुच्छृंखल, शुद्ध जिविका वाले पुरुष के जीवन को कठिनाए से बीतते देखा जाता है.
यो पाणमतिपातेति, मुसावादञ्च भासति
लोके अदिन्नमादियति, परदारञ्च गच्छति.
सुरामेरयपानञ्च, यो नरो अनुयुञ्जति
इधेवमेसो लोकस्मिं, मूलं खणति अत्तनो.
हिंदी: जो संसार में हिंसा करता है, झूठ बोलता है, चोरी करता है, परस्त्रीगमन करता है, मद्द्यपान करता है, वय व्यक्ति यहीं इसी लोक में अपनी जड़ खोदता है.
एवं भो पुरिस जानाहि, पापधम्मा असञ्ञता
मा तं लोभो अधम्मो च, चिरं दुक्खाय रन्धयुं.
हिंदी: हे पुरुष! ऐसा जान कि अकुशल धम्म पर संयम करना आसान नहीं है. तुझे लोग (राग) तथा अधम्म (पाप, अकुशल धम्म) चिरकाल तक दु:ख में न रांधते (पकाते रहें.
ददाति वे यथासद्धं, यथापसादनं जनो
तत्थ यो मङ्कु भवति, परेसं पानभोजने
न सो दिवा वा रत्तिं वा, समाधिमधिगच्छति.
हिंदी: लोग अपनी श्रद्धा और प्रसन्नता के अनुरूप दान देते हैं. दूसरों के खाने-पीने से जो खिन्न होता है वह दिन हो या रात कभी भी उपचार अथवा अर्पणा समाधि को प्राप्त नहीं करता है.
यस्स चेतं समुच्छिन्नं, मूलघच्चं समूहतं
स वे दिवा वा रत्तिं वा, समाधिमधिगच्छति.
हिंदी: किंतु जिसकी ऐसी मनोवृति उच्छिन्न हो गयी है (समूल नष्ट) वही, दिन हो या रात सदैव, एकाग्रता को प्राप्त होता है.
नत्थि रागसमो अग्गि, नत्थि दोससमो गहो
नत्थि मोहसमं जालं, नत्थि तण्हासमा नदी.
हिंदी: राग के समान अग्नि नहीं है, न द्वेष के समान जकड़न. मोह के समान फंदा नहीं है, न तृष्णा के समान नदी.
सुदस्सं वज्जमञ्ञेसं, अत्तनो पन दुद्दसं
परेसं हि सो वज्जानि, ओपुनाति यथा भुसं
अत्तनो पन छादेति, कलिंव कितवा सठो.
हिंदी: दूसरों का दोष देखना आसान है, किंतु अपना दोष देखना कठिन. वह व्यक्ति दूसरों के दोषों को भूसे की तरह उड़ाता फिरता है, किंतु अपने दोषों को वैसे ही ढ़कता है जैसे बईमान जुआरी पासे को.
आकासेव पदं नत्थि, समणो नत्थि बाहिरे
पपञ्चाभिरता पजा, निप्पपञ्चा तथागता.
हिंदी: आकाश में कोई पद चिन्ह नहीं होता, बुद्ध-शासन से बाहर कोई श्रमण नहीं होता. लोग भांति-भांति के प्रपंचों में पड़े रहते है, किंतु तथागत निष्प्रपंच होते हैं.
आकासेव पदं नत्थि, समणो नत्थि बाहिरे
सङ्खारा सस्सता नत्थि, नत्थि बुद्धानमिञ्जितं.
हिंदी: आकाश में कोई पद चिन्ह होता, बुद्ध-शासन से बाहर मुक्ति के मार्ग पर चलता हुआ या मुक्ति का फल-प्राप्त कोई श्रमण नहीं होता, संस्कार शाश्वत नहीं होते, बुद्धों में किसी प्रकार की चंचलता नहीं होती.
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— भवतु सब्ब मङ्गलं —