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पण्डितवग्गो

निधीनं व पवत्तारं, यं पस्से वज्जदस्सिनं
निग्गय्हवादि मेधावि, तादिसं पण्डितं भजे
तादिसं भजमानस्स, सेय्यो होति न पापियो.

हिंदी: जो व्यक्ति अपना दोष दिखाने वाले को (भूमि में छिपी) संपदा दिखावे वाले की तरह समझे, जो संयम की बात करने वाले मेधावी पंडित की संगति करे, उस व्यक्ति का मंगल ही होता है, अमंगल नहीं.

ओवेदेय्यानुसासेय्य, असब्भा च निवारये
सतञ्हि सो पियो होति, असतं होति अप्पियो.

हिंदी: जो उपदेश दे, अनुशासन करे, अनुचित कार्य से रोके, वह सत्पुरुषों का प्रिय होता है और असत्पुरुषों का अप्रिय.

न भजे पापके मित्ते, न भजे पुरिसाधमे
भजेथ मित्ते कल्याणे, भजेथ पुरिसुत्तमे.

हिंदी: न पापी मित्रों की संगत करे, न अधम्म पुरुषों की. संगति करे कल्याणमित्रों की, उत्तम पुरुषों की.

धम्मपीति सुखं सेति, विप्पसन्नेन चेतसा
अरियप्पवेदिते धम्मे, सदा रमति पण्डितो.

हिंदी: बुद्ध के उपदेशित धम्म में सदा रमण करता है पंडित. (नवविध लोकोत्तर) धम्म (रस) का पान करने वाला विशुद्धचित्त हो सुखपूर्वक विहार करता है.

उदकञ्हिनयन्ति नेत्तिका, उसुकारानमयन्ति तेजनं
दारुं नमयन्ति तच्छका, अत्तानं दमयन्ति पण्डिता.

हिंदी: पानी ले जाने वाले (जिधर चाहते हैं, उधर ही से) पानी को ले जाते हैं, बाण बनाने वाले बाण को (तपा कर) सीधा करते हैं, बढ़ई लकड़ी को (अपनी रुचि के अनुसार) सीधा या बांका करते हैं और पंडित (जन) अपना (ही) दमन करते है.

सेलो यथा एक घनो, वातेन न समिरति
एवं निन्दापसन्सासु, न समिञ्जन्ति पण्डिता.

हिंदी: जैसे सघन शैल-पर्वत वायु से प्रकंपित नहीं होता, वैसे ही समझदार लोग निंदा और प्रसंसा (वस्तुत: आठों लोक धर्मों) से विचलित नहीं होते.

यथापि रहदो गम्भीरो, विप्पसन्नो अनाविलो
एवं धम्मानि सुत्वान, विप्पसीदन्ति पण्डिता.

हिंदी: (देशना-) धम्म को सुनकर पंडित (जन) गहरे, स्वच्छ, निर्मल सरोवर के समान अत्यंत प्रसन्न (संतुष्ट) होते है.

सब्बत्थ वे सप्पुरिमा चजन्ति, न कामकामा लपयन्ति सन्तो
सुखेन फुट्टा अथ वा दुखेन, न उच्चावचं पण्डिता दस्सयन्ति.

हिंदी: सत्पुरुष सर्वत्र (पांचों स्कंधों में‌) छंदराग छोड़ देते हैं. संत जन कामभोगों के लिए बात नहीं चलाते. चाहे सुख मिले या दु:ख, पंडित (जन) अपने मन का) उत्तर-चढ़ाव प्रदर्शित नहीं करते.

न अत्तहेतु न परस्स हेतु, न पुत्तमिच्छे न धनं न रट्ठं
न इच्छेय्य अधम्मेन समिद्धिमत्तनो, स सीलवा पञ्ञवा धम्मिको सिया.

हिंदी: जो अपने लिए या दूसरे के लिए पुत्र, धन अथवा राज्य की कामना नहीं करता और न अधम्म से अपनी उन्नति चाहता है, वह शीलवान, प्रज्ञावान और धार्मिक होता है.

अप्पका ते मनुस्सेसु, ये जना पारगामिनो
अथायं इतरा पजा, तीरमेवानुधावति.

हिंदी: मनुष्यों में (भवसागर से) पार जाने वाले लोग विरले ही होते हैं. ये दूसरे लोग तो (सत्कायदृष्टिरूपी) तट पर ही दौड़ने वाले होते हैं.

ये च खो सम्मदक्खाते, धम्मे धम्मानुवत्तिनो
ते जना पारमेस्सन्ति, मच्चुधेय्यं सुदुत्तरं.

हिंदी: जो लोग सम्यक प्रकार से आख्यात धम्म का अनुवर्तन करते हैं, वे अति दुम्तर मृत्यु-क्षेत्र के पार चले जायेंगे.

कण्हं धम्मं विप्पहाय, सुक्कं भावेथ पण्डितो
ओका अनोकं गम्म, विवेके यत्थ दूरमं.

तत्राभिरतिमिच्छेय्य, हित्वा कामे अकिञ्चनो
परियोदपेय्य अत्तानं, चित्तक्लेसेहि पण्डितो.

हिंदी: पंडित कृष्ण धम्म को त्याग कर शुक्ल (धम्म) की भावना करे (अर्थात पापकर्म को छोड़ कर शुभ कर्म करे) वह घर से बेघर होकर (सामान्य व्यक्ति के लिए) आकर्षणरहित एकांत का सेवन करे.

कामनाओं को त्याग कर अंकिचन (बना हुआ व्यक्ति) वहीं (उसी अवस्था में) रमण करने की इच्छा करे. समझदार (व्यक्ति) (पांच नीवरणरूपी) चित्त-मलों से अपने आपको परिशुद्द करे.

येसं सम्बोधियङगेसु, सम्मा चित्तं सुभावितं
आदानपटिनिस्सग्गे, अनुपादाय ये रता
खीणासवा जुतिमन्तो, ते लोके परिनिब्बुता.

हिंदी: संबोधि के अंगों में जिनका चित्त सम्यक प्रकार से भावित (अभ्यस्त) हो गया है, जो परिग्रह का परित्याग कर अपरिग्रह में रत हैं, आश्रवो (चित्तमलों) से रहित ऐसे ध्युतिमान (पुरुष ही) लोक में निर्वाण-प्राप्त हैं.


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— भवतु सब्ब मङ्गलं—

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