कोइमं पथविं विचेस्सति, यमलोक ञ्चइमं सदेवकं
कोधम्मपदं सुदेसितं, कुसलो पुप्फ मिव पचेस्सति.
हिंदी: कौन है जो इस (आत्मभाव अथवा अपनापे रूपी) पृथ्वी और देवताओं सहित इस यमलोक को (बींध कर इनका) साक्षात्कार कर लेगा? कौन कुशल (व्यक्ति) भली प्रकार उपदिष्ट धम्म के पदों का पुष्प की भांति (चयन करते हुए इनको भी बींध कर इनका) साक्षात्कार कर पायेगा?
सेखो पथविं विचेस्सति, यमलोक ञ्चइमं सदेवकं
सेखो धम्मपदं सुदेसितं, कुसलो पुप्फ मिव पचेस्सति.
हिंदी: शैक्ष्य (निर्वाण की खोज में लगा हुआ व्यक्ति) ही पृथ्वी पर और देवाताओं सहित इस यमलोक पर विजय पायगा. शैक्ष्य (ही) भली प्रकार उपदिष्ट धम्म के पदों का पुष्प की भांति चयन करेगा.
फेणूपमं कायमिमविदित्वा, मरीचिधम्मं अभिसम्बुधानो
छेत्वान मारस्स पपुफ्फकानि, अदस्सनं मच्चुराजस्स गच्छे.
हिंदी: इस शरीर को फेन (झाग) के समान (या) मरु-) मरीचिका के समान (नि:सार) जान कर मार के फंदों को काटकर कर मृत्युराज की दृष्टि से ओझल रहे.
पुप्फानि हेव पचिनन्तं, ब्यासत्तमनसं नरं
सुतं गामं महोघोव, मच्चु आदाय गच्छति.
हिंदी: (कामभोगरूपी) पुष्पों को चुनने वाले, आसक्तियों में डूबे हुए मनुष्य को मृत्यु (वैसे ही) पकड़ कर लेती है जैसे सोये हुए गांव को (नदी की) बड़ी बाढ़ (बहा ले जाती है).
पुप्फानि हेव पचिनन्तं, ब्यासत्तमनसं नरं
अतिञ्ञेव कामेसु, अनतको कुरुते वसं.
हिंदी: (कामभोगरुपी) पुष्पों को चुनने वाले, आसक्तियों में डूबे हुए मनुष्य को (जबकि अभी वह) कामनाओं से तृप्त नहीं हुआ है, यमराज अपने वश में कर लेता है.
यतापि भमरो पुप्फं, वण्णगन्धंहेठयं
पलेति रसमादाय, एवं गामे मुनी चरे.
हिंदी: जैसे भ्रमर फूल के वर्ण और गंध को क्षति पहुँचाये बिना रस को लेकर चल देता है, वैसे ही गांव में मुनि भिक्षाटन करे.
न परेसं विलोमानि, न परेसं कताकतं
अत्तनोव अवेक्खेय्य, कतानि अकतानि च.
हिंदी: दूसरों के पुरुष (मर्मच्छेदक) वचनों पर ध्यान न दे, न दूसरों के कृत-अकृत को देखे, (तद्धिपरीत) अपने (ही) कृत-अकृत को देखे.
यथापि रुचिरं पुप्फं, वण्णवन्तं अगन्धकं
एवं सुभासिता वाचा, अफलाहोति अकुब्बतो.
हिंदी: जैसे कोई पुष्प सुंदर और वर्णयुक्त होने पर भी गंधरहित हो, वैसे ही अच्छी कही हुई (बुद्ध) वाणी होती है फलरहित, यदि कोई तदनुसार (आचरण) न करें.
यथापि रुचिरं पुप्फं, वण्णवन्तं सुगन्धकं
एवं सुभासिता वाचा, सफलाहोति कुब्बतो.
हिंदी: जैसे कोई पुष्प सुंदर और वर्णयुक्त हो और सुगंध वाला हो, वैसे ही अच्छी कही हुई (बुद्ध) वाणी होती है फलसहित, यदि कोई तदनुसार (आचरण) करने वाला हो.
यथापि पुप्फ रासरासिम्हा, कयिरा मालागुणे बहू
एवं जातेन मच्चेन, कत्तब्बं कुसलं बहुं.
हिंदी: जैसे (कोई व्यक्ति) पुष्प-राशि से बहुत सी मालाएं बनाये, ऐसे ही उत्पन्न हुए प्राणी को बहुत-सा कुशल कर्म (पुण्य) करना चाहिए.
न पुप्फ गन्धो पटिवातमेति, न चन्दनं तगरमल्लिकावा
सतञ्च गन्धो पटिवातमेति, सब्बा दिसा सप्पुरिसो पवायति.
हिंदी: चंदन, तगर, कमल अथवा जूही – इन (सभी) की सुगंधों से शील-सदाचार की सुगंध बढ़-चढ़ कर है.
चन्दनं तगरं वापि, उप्पलं अथ वस्सिकी
एतेसं गंधजातानं, सीलगन्धो अनुत्तरो.
हिंदी: तगर और चंदन की गंध, उत्पल (कमल) और चमेली की गंध – इन भिन्न-भिन्न सुगंधिकों से शील की गंध अधिक श्रेष्ठ है.
अप्पमत्तो अयं गन्धो, य्वायं तगरचन्दनं
यो च सीलवतं गन्धो, वाति देवेसु उत्तमो.
तगर और चन्दन की जो गंध फैलती है वह अल्पमात्र है जो यह शीलवानों की गंद है वह उत्तम (गंध) देवताओं में फैंलती है.
तेसं सम्पन्नसीलानं, अप्पमादविहारिनं
सम्मदञ्ञा विमुत्तानं, मारो मग्गं न विन्दति.
जो शीलसंपन्न है, प्रमादरहित होकर विहार करते है, यथार्थ ज्ञान द्वारा मुक्त हो चुके हैं, उनके मार्ग को मार नहीं देख पाता.
यथा सङकारठानस्मिं, उज्झितस्मिं महापथे
पदुमं तत्थ जायेथ, सुचिगन्थं मनोरमं.
एवं सङकारभूतेसु, अन्धभूते पुथुज्जने
अतिरोचति पञ्ञाय, सम्मासम्बुद्धसावको.
हिंदी: जिस प्रकार महापथ पर फैंके गये कचरे के ढेर में पवित्र गंध वाला मनोरम पद्म उत्पन्न हो जाता है, उसी प्रकार (कचरे के समान) भगवान सम्यक बुद्ध का श्रावक भी अपनी प्रज्ञा से अंधे पृथग्जनों के बीच अत्यतं शोभायमान होता है.
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— भवतु सब्ब मङ्गलं—