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यमकवग्गो

मनोपुब्बङग्मा धम्मा, मनोसेट्ठा मनोमया
मनसा चे पदुट्ठेन, भासति वा करोति वा
ततो नं दुक्खमन्वेति, चक्कं व वहतो पदं.

हिंदी: मन सभी धर्मों (प्रवर्तियों) का अगुआ है, मन ही प्रधान है, सभी धर्म मनोमय हैं. जब कोई व्यक्ति अपने मन को मैला करके कोई वाणी बोलता है, अथवा शरीर से कोई कर्म करता है, तब दु:ख उसके पीछे ऐसे हो लेता है, जैसे गाड़ी के चक्के बैल के पैरों के पीछे-पीछे हो लेते हैं.

मनोपुब्बङग्मा धम्मा, मनोसेट्ठा मनोमया
मनसा चे पसन्नेन, भासति वा करोति वा
ततो नं सुखमन्वेति, छायाव अनपायिनी.

हिंदी: मस सभी धर्मों (प्रवर्तियों) का अगुआ हैं, मन ही प्रधान है, सभी धर्म मनोमय हैं. जब कोई व्यक्ति अपने मन को उजला रख कर कोई वाणी बोलता है अथवा शरीर से कोई कर्म करता है, तब सुख उसके पीछे ऐसे हो लेता है जैसे कभी संग न छोडने वाली छाया संग-संग चलने लगती हैं.

अक्कोच्छिमं अवधि मं, अजिनि मं अहासि मे
ये च तं उपनय्हन्ति, वेरं तेसं न सम्मति.

हिंदी: ‘मुझे कोसा’, ‘मुझे मारा’, ‘मुझे हराया’, मुझे लूटा’ – जो मन में ऐसी गांठें बांधे रहते हैं, उनका वैर शांत नहीं होता.

अक्कोच्छिमं अवधि मं, अजिनि मं अहासि मे
ये च तं नुपनय्हन्ति, वेरं तेसूपसम्मति.

हिंदी: हिंदी: ‘मुझे कोसा’, ‘मुझे मारा’, ‘मुझे हराया’, मुझे लूटा’ – जो मन में ऐसी गांठें नहीं बांधते हैं, उनका वैर शांत हो जाता हैं.

न ही वेरेन वेरानि, सम्मन्तीध कुदाचनं
अवेरेन च सम्मन्ति, एस धम्मो सनन्तनो.

हिंदी: वैर से वैर शांत नहीं होते, बल्कि अवैर से शांत होते हैं. यही सनातन धर्म हैं.

परे च न विजानन्ति, मयमेत्थ यमामसे
ये च तत्थ विजानन्ति, ततो सम्मन्ति मेधगा.

हिंदी: अनाड़ी लोग नहीं जानते कि यहाँ (इस संसार) से जाने वाले हैं. जो इसे जान लेते हैं उनके झगड़े शांत हो जाते हैं.

सुभानुपस्सिं विहरन्तं, इन्द्रियेसु असंवुतं
भोजनम्हि अमत्तञ्ञुं, कुसीतं हीनवीरियं
तं वे पसहति मारो, वातो रुक्खंव दुब्बलं.

हिंदी: जो शुभ-शुभ को देखकर ही विहार करते हैं, कामभोग के जीवन में रत्त रहते हैं, इंद्रियों से असंयमि हैं, भोजन की उचित मात्रा का ज्ञान नहीं रखते है, जो आलसी हैं, उद्योगहीन हैं उन्हे मार वैसे ही गिरा देता हैं जैसे वायु दुर्बल वृक्ष को.

असुभानुपस्सिं विहरन्तं, इन्द्रियेसु सुसंवुतं
भोजनम्हि च मत्तञ्ञुं, सद्धं आरद्धवीरियं
तं वे नप्पसहति मारो, वातो सेलंव पब्बतं.

हिंदी: अशुभ को अशुभ जान कर विहार करने वाले, इंद्रियों में सुसंयत, भोजन की मात्रा के जानकर, श्रद्धावान और उद्योगरत को मार उसी प्रकार नहीं डिगा सकता जैसे कि वायु शैल पर्वत को.

अनिक्क सावो कासावं, यो वत्थं परिदहिस्सति
अपेतो दमसच्चेन, न सो कासावमरहति.

हिंदी: जिसने कषायों (चित्तमलों) का परित्याग नहीं किया है पर कषाय वस्त्र धारण किये हुए है, वह संयम और सत्य से परे है. वह कषाय वस्त्र (धारण करने) का अधिकारी नहीं है.

यो च वन्तक सावस्स, सीलेसु सुसमाहितो
उपेतो दमसच्चेन, स वे कासावमरहति.

हिंदी: जिसने कषायों (चित्तमलों) को निकाल बाहर किया हैं, शीलों में प्रतिष्ठित है, संयम और सत्य से युक्त है, वह नि:संदेह काषाय वस्त्र (धारन करने) का अधिकारी हैं.

असारे सारमतिनो, सारे चासारदस्सिनो
ते सारं नाघिगच्छन्ति, मिच्छासङकप्पगोचरा.

हिंदी: जो असार को सार और सार को असार समझते हैं, ऐसे गलत चिंतन में लगे हुए व्यक्तियों को सार प्राप्त नहीं होता.

सारञ्ञ सारतो ञत्वा, असारञ्च असारतो
ते सारं अधिगच्छन्ति, सम्मासङकप्पगोचरा.

हिंदी: सार को सार और असार को असार जान कर सम्यक चिंतन वाले व्यक्ति सार को प्राप्त कर लेते हैं.

यथा अगारं दुच्छन्नं, वुट्ठी समतिविज्झति
एवं अभावितं चित्तं, रागो समतिविज्झति.

हिंदी: जैसे बुरी तरह छेद हुए घर में वर्षा का पानी घुस जाता हैं, वैसे ही अभावित चित्त में राग घुस जाता है.

यथा अगारं सुछन्नं, वुट्ठी न समतिविज्झति
एवं सुभावितं चित्तं, रागो न समतिविज्झति.

जैसे अच्छी तरह ढके हुए घर में वर्षा का पानी नहीं घुस पाता है, वैसे ही (शमथ और विपश्यना से) अच्छी तरह भावित चित्त में राग नहीं घुस पाता है.

इध सोचति पेच्च सोचति, पापकारी उभयत्थ सोचति
सो सोचति सो विहञ्ञति, दिस्वा कम्मकि लिट्ठमत्तनो.

हिंदी: यहाँ (इस लोक में) शोक करता है, मरणोपरांत (परलोक में) शोक करता है, पाप करने वाला (व्यक्ति) दोनों जगह शोक करता है. वह अपने कर्मों की मलिनता देख कर शोकापन्न होता है, संतापित होता हैं.

इध मोदति पेच्च मोदति, कतपुञ्ञो उभयथ्त मोदति
सो मोदति सो पमोदति, दिस्वा कम्मविसुद्धिमत्तनो.

हिंदी: यहां (इस लोक में) प्रसन्न होता है, मरणोपरांत (परलोक में) प्रसन्न होता है, पुण्य किया हुआ व्यकित दोनों जगह प्रसन्न होता है. वह अपने कर्मो की शुद्धता (पुण्य कर्म संपत्ति) देख कर मुदित होता है, प्रमुदित होता है.  

इध तप्पति पेच्च तप्पति, पापकारी उभयत्थ तप्पति
“पापं मे कतन्ति” तप्पति, भिय्यो तप्पति दुग्गतिं गतो.

यहाँ (इस लोक में) संतप्त होता है, प्राण छोडकर (परलोक में) संतप्त होता है. पापकारी दोनों जगह संतप्त होता है. “मैंने पाप किया है” – इस (चिंतन) से संतप्त होता है (और) दुर्गति को प्राप्त होकर और भी (अधिक) संतप्त होता है.

इध नन्दति पेछ नन्दति, कतपुञ्ञो उभयत्थ नन्दति
“पुञ्ञं मे कतन्ति” नन्दति, भिय्यो नन्दति सुग्गतिं गतो.

यहाँ (इस लोक में) आनंदित होता है, प्राण छोडकर (परलोक में) आनंदित होता है. पुण्यकारी दोनों जगह आनंदित होता है. “मैंने पुण्य किया है” – इस (चिंतन) से आनंदित होता है (और) सुगति को प्राप्त होने पर और भी (अधिक) आनंदित होता है.

बहुम्पि चे संहितं भासमानो, न तक्करो होति नरो पमत्तो
गोपोव गावो गणयं परेसं, न भागवा सामञ्ञस्स होति.

हिंदी: धम्मग्रंथों (त्रिपिटक) का कितना ही पाठ करें, लेकिन यदि प्रमाद के कारण मनुष्य उन धम्मग्रंथों के अनुसार आचरण नही करता, तो दूसरो की गायें गिनने वाले ग्वालों की तरह श्रमणत्व का भागी नहीं होता.

अप्पम्पि च संहितं भासमानो, धम्मस्स होति अनुधम्मचारी
रागञ्च दोसञ्च पहाय मोहं, सम्मप्पजानो सुविमुत्तचित्तो
अनुपादियानो इध वा हुरं वा, स भागवा सामञ्ञस्स होति.

हिंदी: धम्मग्रंथों का भले थोड़ा ही पाठ करें, लेकिन यदि वह (व्यक्ति) धम्म के अनुकूल आचरण करने वाला होता है, तो राग, द्वेष और मोह को त्यागकर, संप्रज्ञानी बन, भली प्रकार विमुक्त चित्त होकर, इहलोक अथवा परलोक में कुछ भी आसक्ति न करता हुआ श्रमण्त्व का भागी हो जाता है.


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— भवतु सब्ब मङ्गलं —

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