सवाल: क्या आप बौद्ध लोग ईश्वर में विश्वास रखते हैं?
जवाब: नही, हम ईश्वर में विश्वास नही रखते. इसके कई कारण हैं. आधुनिक समाजशास्त्री व मनोवैज्ञानिकों की तरह बुद्ध ने देखा की कई धार्मिक मान्यताएँ, विशेषत: ईश्वर की मान्यता का मूल, चिंता व भय हैं. वे कहते हैं:
“भयभीत लोग पवित्र पर्वत, पवित्र वन, पवित्र वृक्ष और मंदिर की और जाते हैं.”
प्राचीन मनुष्य खतरों से भरी दुनिया में रहता था. उसे हमेशा हिंसक पशुओं का, भोजन न मिलने का, जख्मी या बीमार होने का और प्राकृतिक आपदाओं जैसे तूफान, बिजली, ज्वालामुखी आदि का भय था. कहीं कोई सुरक्षा न दिखने पर उन्होने स्वयं को समझाने के लिये, ढाढस बंधाने के लिये, साहस बढाने के लिये ईश्वर की कल्पना ईजाद की. आज भी आप देखेंगे कि लोग बुरे वक्त में ज्यादा धार्मिक होते हैं. और कहते हैं कि ईश्वर पर भरोसा करने से उन्हे कठिन परिस्थितियों से जूझने की ताकत मिलि. अक्सर लोग कहते हैं कि, किसी एक ईश्वर पर भरोसा कर की गई उनकी प्रार्थनाये पडने पर स्वीकृत हुई हैं. इससे बुद्ध की यह शिक्षा कि भगवान की कल्पना मनुष्य के भय व हताशा से निकली हैं, सही साबित होती हैं.
बुद्ध का ईश्वर को नकारने का दूसरा कारण यह हैं कि ईश्वर का कोई प्रमाण नही हैं. कई धर्म यह दावा करते हैं कि उन्ही के शास्त्रों में ईश्वर के वचन हैं, सिर्फ वे ही एक मात्र ईश्वर को समझते हैं, उन्ही के ईश्वर का अस्तित्व हैं तथा औरों के ईश्वर का नही. कुछ कहते हैं कि ईश्वर पुरुष हैं, कुछ कहते हैं ईश्वर स्त्री हैं और कुछ कहते हैं वह दोनों का सम्मिलन हैं. कुछ कहते हैं भगवान एक हैं, कुछ कहते हैं तीन और कुछ कहते हैं कि उसका स्वरूप अज्ञेय हैं. सभी को अपने ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण ठीक लगते हैं पर औरों के ईश्वर का अस्तित्व अमान्य हैं. सदीयों से कई धर्म अनेकों नये ढंग से ईश्वर को प्रमाणित करते आये हैं. फिर भी आजतक ईश्वर का अस्तित्व साबित नही हुआ. जिस ईश्वर की वे पूजा करते हैं वह कैसा होगा इस पर भी लोग सहमत नही हैं. बौद्ध अप्रमाणित बातों को नही मानते हैं.
तीसरा कारण बुद्ध ने ईश्वर को नकारा क्योंकि उन्हे ऐसी श्रद्धा जरूरी नही लगी. कुछ लोग हैं जिन्हे लगता हैं कि अस्तित्व के निर्मिती का मूल जानने के लिए ईश्वर में विश्वास जरूरी हैं. मगर विज्ञान ने विश्व निर्मिती का रहस्य, ईश्वर की कल्पना किये बिना समझाया हैं. कुछ लोग मानते हैं कि सुखी एवं अर्थपूर्ण जीवन के लिये ईश्वर में भरोसा जरूरी हैं. मगर हम देख सकते हैं कि ऐसा नही हैं.
लाखों नास्तिक, स्वतंत्र विचारों वाले अबौद्ध भी ईश्वर पर विश्वास के बिना अर्थपूर्ण एवं सुखी जीवन जी रहे हैं. कुछ का मानना हैं कि मनुष्य स्वयं को मदद करने में असमर्थ हैं इसलिए ईश्वर में श्रद्धा जरूरी हैं. यह भी सबूतों के आधार पर उलटा ही दिखाई देता हैं. अक्सर दिखाई देता हैं कि लोगों ने ईश्वर के बिना व स्वयं कि शक्ति से ही कठिन परिस्थितियों, व्यंग, पंगुता, गंभीर विपति, दुर्दशा आदि पर विजय पाई हैं.
कुछ लोग मानते हैं कि ईश्वर के बिना मुक्ति संभव नही. मगर यह तर्क तभी सही हैं जब आप मुक्ति की ईश्वरी संकल्पना को मानते हैं, जो की बौद्धों में अस्वीकृत हैं.
बुद्ध ने स्वानुभव से यह जाना की हर व्यक्ति में इतनी शक्ति हैं कि वह स्वयं अपने चित को शुद्ध कर सकता हैं, असीम करुणा व प्रज्ञा विकसित कर सकता हैं. उनकी शिक्षा ने प्रेरित किया की हम स्वर्ग से ध्यान हटाकर ह्रदय की और लगाये ताकि समस्याओं को अपनी समझ से सुलझा सकें.
सवाल: लेकिन अगर ईश्वर नही हैं तो विश्व निर्माण कैसे हुआ?
जवाब: सभी धर्मों मे पौराणिक कथाएँ इसका जवाब देने कि कोशिश करते हैं. पुराने जमाने में दंतकथाएँ पर्याप्त थी. 21वीं सदी में दंतकथाओं पर विज्ञान हावी हुआ. विज्ञान ने विश्व की निर्मिती को ईश्वर के आधार के बिना समझाया हैं.
सवाल: बुद्ध विश्व निर्मिती के बारे में क्या कहते हैं?
जवाब: बुद्ध की दृष्टि आधुनिक विज्ञान की धारणा से मेल खाती हैं. अगन्न सुत में बुद्ध ने कहा कि विश्व अनंत काल से नष्ट होकर पुननिर्मित होता आया हैं. पहला जीवन पानी से उत्पन्न होकर अनंत काल में सरल जीव से जटिल जीवन तक उत्क्रांत/विकसित हुआ. बुद्ध कहते हैं कि यह सारी प्रक्रियाएँ अनंत काल से स्वयं नैसर्गिक नियमों से हैं.
सवाल: आप कहते हैं कि ईश्वर नही हैं तब फिर चमत्कारों के बारे में क्या कहेंगे?
जवाब: कई लोगों का यह मानना हैं कि चमत्कारों से ईश्वर का अस्तित्व प्रमाणित होता हैं. हम सुनते हैं कि कोई बिमारी दुरुस्त हुई पर इसे चिकित्सीय क्षेत्र से स्वतंत्र पुष्टि नही मिलती. हम दूसरों से सुनते हैं कि किसी चमत्कार से दुर्घटना टली पर कभी कोई प्रत्यक्ष गवाह नही कहता कि असल में क्या हुआ होगा. हम अफवाहे सुनते हैं कि प्राथना से कोई बिमारी दुरुस्त हुई या कमजोर अंग वाले शक्तिशाली हुये पर कभी इसका क्ष-किरण (X-Ray) परीक्षण या चिकित्सकों, परिचारकों से समर्थन नही होता. मानयता, सुनी सुनाई बातें या अफवाहें प्रत्यक्ष प्रमाण का पर्याय नही होती, और चमत्कारों का प्रत्यक्ष प्रमाण दुर्लभ हैं.
पर असामान्य व अकथनीय घटनायें कभी कभार होती भी हैं. मगर इसे समझा सकने की हमारी मर्यादा ईश्वर को प्रमाणित नही करती, बल्कि यही प्रमाणित करती हैं कि हमारा ज्ञान अपूर्ण हैं. आधुनिक चिकित्सा शास्त्र की खोज के पहले लोग बिमारीयों को ईश्वर की दी हुई सजा मानते थे. अब हम कारण जानते हैं तो बिमार होने पर दवा लेते हैं.
समय के साथ ज्ञान बढने पर हम चमत्कारों को समझ पायेंगे, ठीक वैसे ही जैसे हम बिमारी का कारण जानते हैं.
सवाल: परंतु कई लोग विभिन्न रुपों में भगवान को मानते हैं तब तो यह सच ही होगा?
जवाब: ऐसा नही हैं. ऐसा समय था जब लोग मानते थे कि पृथ्वी चपटी हैं, पर वे सब गलत थे. माननेवालों की संख्या से सत्य या असत्य का फैसला नही होता. कोई एक बात सत्य हैं या असत्य हैं यह केवल तथ्यों और प्रमाणों के आधार पर ही कहा जा सकता हैं.
सवाल: कुछ लोग कहते हैं कि ईश्वर का प्रभाव सब तरफ हैं. वे कहते हैं कि अस्तित्व का सौंदर्य और मानव शरीर की जटीलता ही सर्वोच्च बुद्धिमता वाले एवं प्रेमपूर्ण निर्माता के अस्तित्व का प्रमाण हैं.
जवाब: दुर्भाग्य से यह संकल्पना तुंरत बिखरती हुई दिखाई देती हैं जब हम जीवन का दूसरा पहलु देखते हैं – कुष्ठ रोग के जीवाणु, कर्क रोग की पेशिया, परजीवी कृमी, रक्त्शोषी किडे और प्लेग फैलाने वाले चुहें. सर्वोच्च बुद्धिमता वाले, दु:ख व पीदा देने वाली चीजों को कैसे निर्माण करेंगे? थोडा ठेहरें और सोचे; कितने लोग भुकंप, सूखा, बाढ, सुनामी से मरते या घायल होते हैं. अगर कोई प्रेमपूर्ण निर्माता होता तब वह ऐसी चीजों को निर्माण क्यों करता या घतने देता?
सवाल: अगर मैं बौद्ध बना तो दुनिया में अकेला पड जाऊंगा. जो लोग ईश्वर में विश्वास रखते हैं वह संकट में रक्षा के लिए पुकार तो सकते हैं. मुझे लगता यह ईश्वरी श्रद्धा काफी सहारा देती हैं.
जवाब: जो लोग ईश्वर में विश्वास रखते हैं वे सोचते हैं कि उन्हें कोई मदद या संरक्षण मिलता हैं. पर वस्तुत: ऐसा नही हैं. जो आराम और विश्वास उन्हे मिलता हैं वो उनकी श्रद्धा से, उनके मन से हैं न की भगवान से. ईश्वर पर भरोसा न करने वालों से भरोसा करने वालों के कम अपघात होना, दिर्घायु होना, कर्करोग की कम संभावना होना, परिक्षा में सफल होना, अमित होना या कुछ और भिन्नता होना; इसका कोई प्रमाण नही हैं. अगर एक जंबो जेट में 600 यात्री हैं तो दुर्घटना होने पर जैसा कभी-कभी होता हैं, सभी 600 मरते हैं, ईश्वर में भरोसा करने वाले और भरोसा न करने वाले भी.
जीवन की समस्याओं से जूझने के लिए हम सबके पास मानसिक संसाधन व बुद्धि हैं. आधारहीन विश्वास के बदले हमें इन शक्तियों को विकसित करने पर ध्यान देना चाहिये.
सवाल: अगर बौद्ध लोग ईश्वर में विश्वास नही करते हैंतो फिर और किस चीज में विश्वास करते हैं?
जवाब: हम ईश्वर में विश्वास नही रखते क्योंकि हम मनुष्य में विश्वास रखते हैं. हमें विश्वास हैं कि हर इंसान अनमोल व महत्वपूर्ण हैं, सभी में बुद्धत्व की क्षमता हैं. हमे विश्वास हैं कि, अज्ञान और तर्क से परे हम सत्य को जैसा हैं वैसा देख सकते हैं. हमे भरोसा हैं कि, नफरत, क्रोध, मत्सर, ईर्षा आदि को प्रेम, शांती, दान और करुणा में परिवर्तित किया जा सकता हैं. हमे विश्वास हैं कि हर इंसान की क्षमता हैं कि वो आचरण करने वालों की मदद या मार्गदर्शन के अनुसार कोशिश करें और बुद्ध का आदर्श सामने रखे तो इसे पा सकता हैं. बुद्ध कहते हैं:
“स्वयं के सिवा हमें कोई नही बचाता,
कोई बचा सकता नही, बचा पायेगा नही.
हमें स्वयं अपने मार्ग पर चलना हैं,
बुद्ध मात्र स्पष्ट मार्ग दिखाते हैं.”
(DHP. 165)