HomeBuddhist Ceremonyबौद्ध विवाह संस्कार अर्थात बौद्ध शादी कैसे करते हैं?

बौद्ध विवाह संस्कार अर्थात बौद्ध शादी कैसे करते हैं?

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. इसलिए, सामाजिक दायित्वों को निभाना उसका कर्तव्य है. इसी सामाजिक दायित्व में एक दायित्व का नाम है – विवाह संस्कार. विवाह एक सामाजिक आवश्यकता है. समाज में अपने ग्रहस्थ जीवन को अनुशासनबद्ध तरिके से चलाने के लिए उपासक-उपासिका के आपसी संबंध इसी विवाह संस्कार से सुनिश्चित होते हैं.

भारत एक जाति प्रधान देश है. यहां पर विवाह पद्धति भी जाति और धर्म के हिसाब से अलग-अलग है. हिंदू विवाह, मुस्लिम विवाह, सिक्ख विवाह पद्दति बौद्धों की विवाह पद्दति से बिल्कुल अलग होती है. और आप बुद्धिस्ट शादी अन्य जाति/धर्म की शादी परंपरा से नही करते हैं. क्योंकि, ये पद्दतियां बौद्धों के विचारों और संस्कारों से मेल नही खाते हैं.

तो सवाल आता है कि फिर बुद्धिस्ट शादी कैसे करते हैं अर्थात बौद्धों का विवाह कैसे होता है? बौद्ध धर्म में शादी कैसे होती है?

चलिए, जानते हैं एक आदर्श बौद्ध विवाह पद्दति क्या है और बौद्ध विवाह पद्दति से शादी संपन्न कैसे होती है.

स्पष्टीकरण

हम मानकर चल रहे हैं कि वर-वधु के पालकों ने विवाह पूर्व सारी तैयारियां कर ली हैं केवल विवाह संस्कार शेष है. हम यहां केवल विवाह स्थल पर बौद्ध विवाह पद्दती का उल्लेख कर रहे हैं.

आदर्श बौद्ध विवाह संस्कार पद्दति – बुद्धिस्ट शादी ऐसे होती है?

#1 पूजा स्थल और उसके कार्य

Buddha Pooja Sthal
एक बौद्ध घर का बुद्ध पूजा स्थल

सबसे पहले विवाह स्थल (घर, सार्वजनिक पार्क/आरामग्रह/स्कूल, बुद्ध विहार, होटल आदि) पर एक पूजा स्थान तैयार करना है. यह जगह साफ-सुथरी और धरती से ऊँची होनी चाहिए.

इससे तैयार करने के लिए आप सुंदर-सी पूजा वेदिका सजाएं, जिसमें ऊँची वेदिका (स्टूल या टेबल) पर भगवान बुद्ध की मूर्ति अथवा चित्र रखा हो, उससे थोड़ा-सा नीचे अपने कुल पूर्वजों (यथा दादा-परदादा इत्यादि), अपने पूजनीय बोधिसत्वों के चित्र स्थापित करें. इसके बगल में भंतेजी का आसन लगाएं और उस पर सुविधानुसार तकिया/कुषन रखें.

उसके सम्मुख मिट्टी अथवा धातु का एक कलश रखें, जिसमें पानी हो. कलश पर रखी कटोरी में दीप प्रज्ज्वलित करें. कलश या मटके में सफेद धागे का एक सिरा डुबो दें, उसका एक हिस्सा निकाल कर भगवान बुद्ध के हाथ में लपेटते हुए उसी सिरे को वर पक्ष, वधु पक्ष के सम्बन्धियों के हाथ में थमाते हुए वर-वधु के हाथ में दें और दूसरे सिरे को कलश में ही लपेट दें.

आगे संस्कारों को सम्पन्न करने के लिए मंच पर एक माईक विवाह सम्पन्न कराने वाले आचार्य के सम्मुख तथा वर-वधु के सम्मुख एक कॉर्डलेस माइक या दो स्टैण्ड माइक हों तो मंच के सम्मुख खड़े, बैठे लोगों को भी सुविधा होगी.

#2 विवाह स्थल का त्रिरत्न समर्पण करना

पूजा स्थान की तैयारियों के बाद पूरा विवाह स्थल त्रिरत्न को समर्पित किया जाना चाहिए. संकल्पना यह होती है कि बुद्ध वेदिका से सज्जित विवाह मण्डप उतनी देर के लिए बुद्ध विहार हो जाता है, जितनी देर विवाह संस्कार सम्पन्न होगा. बेहतर हो कि समर्पण गाथाएं आचार्य बोलें और उपस्थित लोग उच्च स्वर में दोहराएं. यह नालन्दा महाविहार की प्राचीन परम्परा है कि जब भी बुद्ध विहार के अतिरिक्त अन्य किसी स्थान पर बौद्ध संस्कार सम्पन्न कराए जाएं तो वह स्थान को पहले त्रिरत्नों को समर्पित कीजिये.

समर्पण ऐसे करते हैं

हम यह क्षेत्र
त्रिरत्नों को समर्पित करते हैं
मानवीय सम्बोधि का आदर्श
सम्यक सम्बुद्ध को
हम यह क्षेत्र समर्पित करते हैं.

जिस धम्ममार्ग के
आचरण हेतु
हम सिद्ध हुए हैं,
ऐसे धम्म को
हम यह क्षेत्र समर्पित करते हैं.

जहाँ आपस में
कल्याण मैत्री का
आनन्द हम लेते हैं,
ऐसे संघ को
हम यह क्षेत्र समर्पित करते है.

यहाँ किसी भी
व्यर्थ शब्दों का उचारण ना हो.
न यहाँ चंचल विचारों से
हमारे मन कंपित हों.
पञ्चशीलों के परिपालन के लिए,
मांगलिक जीवन में प्रवेश के लिए,
प्रज्ञा के विकास के लिए,
और धम्ममय आचरण के लिए,
हम यह क्षेत्र
त्रिरत्नों को समर्पित करते हैं.

भले ही बाह्य जगत में
संघर्ष प्रदीप्त हो,
परन्तु यहाँ मात्र शान्ति रहे.
भले ही बाह्य जगत दुःख प्लावित हो,
परन्तु यहाँ मात्र आनन्द रहे.
केवल पवित्र समझे गये ग्रंथों के पाठ से नहीं,
अथवा पवित्र समझे गये जल के सिंचन से ही नहीं,
बल्कि धम्म प्राप्ति के प्रयासों द्वारा,
हम यह क्षेत्र त्रिरत्नों को समर्पित करते हैं.

इस परिमण्डल के सभी ओर,
इस पावन क्षेत्र सभी ओर,
इस मण्डप के सभी ओर
परिशुद्धि के विमल कमलदल खिलें.
इस परिमण्डल के सभी ओर,
इस पावन क्षेत्र के सभी ओर,
इस मण्डप के सभी ओर
दृढ़ संकल्पों का वज्र-तट खड़ा रहे.

इस परिमण्डल के सभी ओर,
इस पावन क्षेत्र के सभी ओर,
इस मण्डप के सभी ओर
संसार का निर्वाण में परिवर्तन करनेवाली,
अग्नि ज्वालाएं रक्षा करें.

यहाँ बैठकर,
यहाँ अभ्यास कर,
यहाँ आचरण कर हमारा मन ‘प्रबुद्ध’ बने.
हमारे विचार ‘धम्म’ बनें
और हमारे आपसी सम्बन्ध ‘संघ’ बनें.

सभी प्राणियों के सुख के लिए,
और सभी प्राणियों के हित के लिए
काया, वाचा, और मन से
हम यह क्षेत्र त्रिरतनों को समर्पित करते हैं.

#3 वर-वधु तथा पालकों द्वार बुद्ध पूजा करना

समर्पण करने के बाद विवाह-मंच पर मौजूद वर-वधु, पालक तथा उपस्थित लोग बुद्ध पूजा से विवाह संस्कार की विधिवत शुरुआत करते हैं. इसके लिए सबसे पहले वर-वधु पूजा वेदिका के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलित करें, अगरबत्ती या धूप जलाएं तथा पुष्प अर्पित करें, फिर तीन बार पंचांग प्रणाम करें.

  • पहली बार प्रणाम पर उच्चारित करेंः बुद्धं नमामि
  • दूसरी बार प्रणाम पर उच्चारित करें: धम्मं नमामि
  • तीसरी बार प्रणाम पर उच्चारित करें: संघं नमामि

पंचांग प्रणाम करने के बाद सिर्फ वर-बधु आचार्य के निर्देशानुसार तिसरण, पञ्सील, सकारात्मक पञ्सील का संगायन करें. शेष लोग शांत रहे.

यह कार पूरा होने के बाद विवाह संस्कार पूरा कराने वाला आचार्य या फिर उपस्थित भिक्खु संघ “त्रिरत्न वंदना” का संगायन करेंगे.

जिसमें वे पहले बुद्ध वंदना, फिर धम्म वंदना और अंत में संघ वंदना का पाठ करते हैं. आप इन तीनों को नीचे दिए गए शब्दों पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं.

👉 बुद्ध वन्दना देंखे

👉 धम्म वन्दना देंखे

👉 संघ वन्दना देंखे

इसके बाद पूजा का शेष भाग आचार्य जी या भंतेजी जी द्वारा पूरा किया जाता है.

#4 वर-वधु के पालकों द्वार घोषणा करना

बुद्ध पूजा के बाद उपस्थित लोगों के बीच वर-वधु के पालकों में से किसी एक (पिता) द्वारा कुछ घोषणाएं की जाती है. यह घोषणा समाज के सामने ही होती है क्योंकि विवाह में आए लोग समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं. इसलिए, इन घोषणाओं को समाज के सामने घोषित समझा जाता हैं.

पहले वधु के पिता उपस्थित समाज के सामने निम्नवत घोषणा करें:

त्रिरत्नों की पावन स्मृति में, बोधिसत्वों एवं अपने पूर्वजो का स्मरण करते हुए तथा उपस्थित समाज को साक्षी मानकर मैं … … … तथा मेरी पत्नी … … … निवासी … … … अपनी पुत्री आयुष्मति सुश्री … … … के लिए श्री … … … एवं श्रीमती … … … निवासी … … … के सुपुत्र चिरंजीव … … … को अपनी सुपुत्री के सुयोग्य वर के रूप में स्वीकार करता हूँ.

तदोपरान्त वर के पिता उपस्थित समाज के सामने निम्नवत घोषणा करें:

त्रिरत्नों की पावन स्मृति में बोधिसत्वों एवं अपने पूर्वजों का स्मरण करते हुए तथा उपस्थित समाज को साक्षी मान कर मैं … … … तथा मेरी पत्नी श्रीमती … … … निवासी … … … अपने सुपुत्र आयुष्मान … … … के लिए श्री … … … एवं श्रीमती … … … निवासी … … … की सुपुत्री आयुष्मती सुश्री … … … को अपने सुपुत्र के लिए सुयोग्य वधु के रूप में स्वीकार करता हूँ.

दोनों पक्षों द्वारा घोषणाएं होने के बाद उपस्थित लोग साधु साधु साधु बोलते हैं…

#5 वर-वधु द्वारा स्वीकृति

वर-वधु के पालकों की घोषणाओं के बाद बारी होती है वर-वधु की. इन दोनों के द्वारा एक-दूसरे को स्वीकार करने की सार्वजनिक घोषणा की जाती है.

वधु द्वारा स्वीकृति

त्रिरत्नों की पावन स्मृति में, बोधिसत्वो एवं पूर्वजों का स्मरण करते हुए अपने माता-पिता तथा उपस्थित समाज को साक्षी मान कर मैं … … … आयुष्मान श्री … … … को अपने पति के रूप में स्वीकार करती हूँ और जीवन भर साथ निभाने की प्रतिज्ञा करती हूँ.

वधु द्वारा अपनी स्वीकृति देने के बाद वर की स्वीकृति ली जाती हैं.

वर द्वारा स्वीकृति

त्रिरत्नों की पावन स्मृति में, बोधिसत्वों एवं पूर्वजों का स्मरण करते हुए अपने माता-पिता तथा उपस्थित समाज को साक्षी मान कर मैं … … … सुश्री … … …को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करता हूँ और जीवन भर साथ निभाने की प्रतिज्ञा करता हूँ.

दोनों की स्वीकृअति के बाद पाणिग्रहण संस्कार शुरु होता है.

#6 जलार्पण विधि से पाणिग्रहण संस्कार

वर के दायें हाथ की हथेली ऊपर, वधु के दायें हाथ की हथेली वर की हथेली के ऊपर रखें. उनके ऊपर दोनों के पिता अपना हाथ लगाएं तथा दोनों के हाथ के नीचे एक थाल रखें. अब वधु का भाई लोटे से पानी हाथ पर डाले एवं आचार्य गाथाओं का पाठ करें:

इच्छितं पत्थितं तुय्हं खिप्पमेव समिज्झतु
सब्बे पूरेन्तु संकप्प्पं चन्दो पन्नरसो यथा

भवतु सब्ब मंगलम् रक्खन्तु सब्ब देवता
सब्ब बुद्धानुभावेन सदा सोत्थि भवन्तु ते

भवतु सब्ब मंगलम् रक्खन्तु सब्ब देवता
सब्ब धम्मानुभावेन सदा सोत्थि भवन्तु ते

भवतु सब्ब मंगलम् रक्खन्तु सब्ब देवता
सब्ब संघानुभावेन सदा सोत्थि भवन्तु ते

अभिवादन सीलस्स निच्चंबद्धापिचायिनो
चत्तारि धम्मावड्ढन्ति आयुवण्णंसुखंबलं…

अब वर-वधु के हाथ अलग-अलग करके, तौलिये से पोंछ कर दोनों हाथों में आचार्य रक्षा सूत्र बांधे, साथ में संगायन करें- भवतु सब्ब मंगलं रक्खन्तु सब्ब देवता…

#7 वर-वधु की प्रतिज्ञा

पाणिग्रहण के बाद प्रतिज्ञाएं ली जाती हैं. यह प्रतिज्ञाएं वर-वधु दोनों द्वारा ही ली जाती हैं.

वर की प्रतिज्ञाएं

त्रिरत्नों की पावन स्मृति में, बोधिसत्वों एवं पूर्वजों का स्मरण करते हुए अपने माता-पिता तथा उपस्थित समाज को साक्षी मान कर मैंः

  1. आपका सम्मान करने की प्रतिज्ञा करता हूँ.
  2. आपका अपमान नहीं करने की प्रतिज्ञा करता हूँ.
  3. अनैतिक आचरण नहीं करने की प्रतिज्ञा करता हूँ.
  4. आपको सम्यक आजीविका द्वारा अर्जित धन से भरण-पोषण करने की प्रतिज्ञा करता हूँ.
  5. आपको अलंकार-आभूषण आदि देकर संतुष्ट रखने की प्रतिज्ञा करता हूँ.

इसके बाद वधु अपनी प्रतिज्ञाएं लेती है.

वधु की प्रतिज्ञाएं

त्रिरत्नों की पावन स्मृति में, बोधिसत्वों एवं पूर्वजों का स्मरण करते हुए अपने माता-पिता तथा उपस्थित समाज को साक्षी मान कर मैं:

  1. अपने घर के सभी कार्यों को भली प्रकार करने की प्रतिज्ञा करती हूँ.
  2. परिजनों एवं परिवार के लोगों की भली प्रकार देख-भाल करने की प्रतिज्ञा करती हूँ.
  3. दुराचार से विरत रहते हुए अपने पति की विश्वासपात्र रहने की प्रतिज्ञा करती हूँ.
  4. आपके अर्जित धन-सम्पत्ति की रक्षा करने की प्रतिज्ञा करती हूँ.
  5. घर के सभी कामों में दक्ष रह कर तथा आलस्यरहित रहने की प्रतिज्ञा करती हूँ.

#8 जयमाला पहनना-पहनाना

बौद्ध वर-वधु जयमाला पहनाते हुए
वर-वधु जयमाला पहनाते हुए

अब हम विवाह के अंतिम पडाव पर आ पहुँचे हैं. वर-वधु द्वारा स्वीकृति तथा प्रतिज्ञाओं के बाद माल्यार्पण किया जाता है. जिसे जयमाला कहते हैं. इसके बाद बौद्ध विवाह संस्कार पूर्ण हो जाता है.

सबसे पहले आचार्य महामग्ङल सुत्त का पाठ करते हैं. इसके बाद माल्यार्पण किया जाता है. इसलिए, सुत्त का पाठ करने से पहले उपस्थित लोगों के हाथों में फूलों की पंखुड़ियाँ बंटवा दें. और वर-वधु के हाथों में जयमाल दे कर मंच पर एक-दूसरे के आमने-सामने खड़ा कर दें.

महामंगल सुत्त का पाठ

(महामंगल सुत्त के नियमित पाठ से सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है. बौद्ध देशों में प्रत्येक मांगलिक अवसर पर यथा गृह-प्रवेश, विवाह, जन्मदिन इत्यादि पर इसका पाठ होता है.)

ऐसा मैंने सुना. एक समय भगवान श्रावस्ती के निकट, अनाथपिंडक के जेतवन में विहार कमहामंगल

जब रात्रि काफी बीत चुकी, एक देवता अपनी दीप्ति से समस्त जेतवन को आलोकित करते हुए, भगवान के सम्मुख उपस्थित हुए, समीप आकर, आदरपूर्वक अभिवादन कर, एक ओर खड़ा हो गये. एक ओर खड़े हो भगवान से वह गाथा में बोले-

संपूर्ण महामंगल सुत्त यहां नही दिया जा रहा है. आप कृपया इसे नीचे दी गई लिंक पर जाकर देख सकते है.

👉 संपूर्ण महामङ्गल सुत्त

अब सुत्त का पाठ पूरा होने के उपरान्त तीन बार साधु-साधु-साधु बोलें. इसके बाद;

  • पहली बार साधु बोलने पर वधु वर के गले में माला पहनाएगी,
  • दूसरी साधु घोष पर वर वधु के गले में माला पहनाएगा,
  • तीसरे साधु घोष पर उपस्थित समाज वर-वधु पर पुष्प वर्षा करेगा.

साथ में मंच पर मौजूद कन्या पक्ष, वर पक्ष के लोग परस्पर एक दूसरे का माल्यार्पण कर स्वागत व साधुवाद करेंगे, एक-दूसरे को बधाइयाँ देंगे..

#9 आशीष देना

अब बधाइयाँ देने के बाद बारी आती है वर-वधु को आशीष देने की. सबसे पहले आचार्य वर-वधु को आशीष देते हैं. आचार्य जय मंगल अट्ठ गाथा का संगायन करते हुए दम्पत्ति को आशीष देंगे. जयमंगल अट्ठगाथा की प्रत्येक गाथा के चौथे चरण में “भवतु ते जयमंगळानि” शब्द समूह आया है. जितनी बार संगायन में ये शब्द समूह आए, उतनी बार वर-वधु पर पुष्प वर्षा करते हुए आशीष देना है.

जयमंगल अट्ठगाथा

बाहुं सहस्समभिनिम्मित्सायुधन्तं,
गिरिमेखळं उदित-घोर-ससेन-मारं.
दानादि धम्मविधिना जितवा मुनिन्दो, 
तं तेजसा भवतु ते जयमंगळानि..1..

मारारतिरेकमभियुज्झित सब्बरत्तिं,
घोरम्पनाळवकं मक्खमथद्ध-यक्खं.
खन्ती सुदन्त विधिना जितवा मुनिन्दो,
तं तेजसा भवतु ते जयमंगळानि..2..

नाळागिरिं गजवरं अतिमत्तभूतं,
दावग्गि चक्कमसनीव सुदारुणन्तं.
मेतम्बुसेक विधिना जितवा मुनिन्दो,
तं तेजसा भवतु ते जयमंगळानि..3.. 

उक्खित्त खग्गमतिहत्थ सुदारुणन्तं,
धावन्ति योजनपथङ्गु-ळिमाळवन्तं. 
इद्धीभिसखंत मनो जितवा मुनिन्दो,
तं तेजसा भवतु ते जयमंगळानि..4..

कत्वान कटूठमुदरं इव गब्भिनीया,
चिञ्चाय दुट्ठ वचनं जनकाय मज्झे.
सन्तेन सोम विधिना जितवा मुनिन्दो,
तं तेजसा भवतु ते जयमंगळानि..5..

सच्चं विहाय-मतिसच्चक वादकेतुं,
वादाभिरोपितमनं अति अन्धभूतं..
पञ्ञापदीप जळितो जितवा मुनिन्दो,
तं तेजसा भवतु ते जयमंगळानि..6..

नन्दोपनन्द-भुजगं विवुधं महिद्धिं,
पुत्तेन थेर भुजगेन दमापयन्तो.
इद्धपदेस विधिना जितवा मुनिन्दो,
तं तेजसा भवतु ते जयमंगळानि..7..

दुग्गाहदिट्ठि भुजगेन सुदठ हत्थं,
ब्रह्मा विसुद्धि जुतिमिद्दि बकाभिधानं.
ञाणागदेन विधना जितवा मुनिन्दो,
तं तेजसा भवतु ते जयमंगळानि..8..

एतापि बुद्ध जयमंगळ अट्ठगाथा,
यो वाचको दिनदिने सरते मतन्दि.
हित्वाननेक विविधनिचुपद्दवानि,
मोक्खं सुखं अधिगमेय्य नरो सपञ्ञो..9

जयमग्ङल गाथा का हिंदी अनुवाद आप नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं. आपकी सुविधा के लिए यहां इसे दे दिया है.

👉 संपूर्ण जयमङ्गल अट्ठगाथा

आचार्य के बाद वर-वधु दोनों परिवारों से आशीष लेते है. यदि समय की गुंजाइश है तो आचार्य संक्षेप में धम्म देशना दे सकते हैं अन्यथा आचार्य के द्वारा धम्मपालन गाथा के संगायन के साथ विवाह संस्कार सम्पन्न होता है:

धम्मपालन गाथा

 सब्बपापस्स अकरणं कुसलस्स उपसंपदा.
सचित्तपरियोदपनं एतं बुद्धान सासनं..1..

धम्मं चरे सुचरितं न तं दुच्चरितं चरे.
धम्मचारी सुखं सेति अस्मिं लोके परम्हि च..2..

न तावता धम्मधरो यावता बहु भासति.
यो च अप्पम्पि सुत्वान धम्मं कायेन पस्सति.
स वे धम्मधरो होति यो धम्मं नप्पमज्जति..3..

नत्थि मे सरणं अञ्ञ, बुद्धो मे सरणं वरं.
एतेन सच्च वज्जेन होतु ते जयमंगलम्..4..

नत्थि मे सरणं अञ्ञ, धम्मो मे सरणं वरं.
एतेन सच्च वज्जेन होतु ते जयमंगलमं.. 5..

नत्थि मे सरणं अञ्ञ, संघो मे सरणं वरं.
एतेन सच्च वज्जेन होतु ते जयमंगलं..6..

नमो बुद्धाय!
नमो धम्माय!
नमो संघाय!

उपस्थित समूह का नमो बुद्धाय करके वर-वधु अभिवादन करें. फिर मित्रों व परिजनों के साथ वीडियोग्राफी, फोटोग्राफी का सत्र शुरू कर सकते हैं.

— भवतु सब्बमङ्गलं —

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