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पियवग्गो

अयोगे युञ्जमत्तानं, योगस्मिञ्च अयोजयं
अत्थं हित्वा पियग्गाही
, पिहेतत्तानुयोगिनं.

हिंदी: अनुचित कर्म (अयोनिसोमनसिकार) में लगा हुआ, उचित कर्म (योनिसोमनसिकार) में न लगने वाला और सदर्थ को छोड़ कर (पांच कामगुणरूपी) प्रिय को पकड़ने वाला (उस पुरुसः की) स्पृहा करे जो आत्मोन्नति में लगा हो.

मा पियेहि समागञ्छि, अप्पियेहि कुदाचनं
पियानं अदस्सनं दुक्खं
, अप्पियानञ्च दस्सनं.

हिंदी: प्रियों (सत्वों अथवा संस्कारों) का संग न करें और न कभी अप्रियों का ही. प्रियों का अदर्शन (न दिखना) दु:खदायी होता है और अपिर्यों का दर्शन (अर्थात, दिख जाना) भी दु:ख़दायी होता है.

तस्मा पियं न करियाथ, पियापायो हि पापको
गन्था तेसं न विज्जन्ति
, येसं नत्थि पियाप्पियं.

हिंदी: इसलिए (किसी को) प्रिय न बनाये, क्योंकि प्रिय का वियोग बुरा लगता है. जिनके (कोई) प्रिय-अप्रिय नहीं होते, उनके कोई बंधन नहीं होते.

पियतो जायती सोको, पियतो जायती भयं
पियतो विप्पमुत्तस्स
, नत्थि सोको कुतो भयं.

हिंदी: प्रिय (वस्तु) से शोक उत्पन होता है, प्रिय से भय उत्पन होता है. प्रिय के बंधन से विमुक्त व्यक्ति को शोक नहीं होता, फिर भय कहां से होगा?

पेमतो जायती सोको, पेमतो जायती भयं
पेमतो विप्पमुत्तस्स
, नत्थि सोको कुतो भयं.

हिंदी: प्रेम (करने) से शोक उत्पन होता है, प्रेम से भय उत्पन होता है. प्रेम के बंधन से विमुक्त व्यक्ति को शोक नहीं होता, फिर भय कहां से होगा?

रतिया जायती सोको, रतिया जायती भयं
रतिया विप्पमुत्तस्स
, नत्थि सोको कुतो भयं.

हिंदी: (पंचकामगुणात्मक) राग (करने) से शोक उत्पन होता है, राग से भय उत्पन होता है. राग के बंधन से विमुक्त व्यक्ति को शोक नहीं होता, फिर भय कहां से होगा?

कामतो जायती सोको, कामतो जायती भयं
कामतो विप्पमुत्तस्स
, नत्थि सोको कुतो भयं.

हिंदी: काम (कामना) से शोक उत्पन होता है, काम से भय उत्पन होता है. काम से विमुक्त व्यक्ति को शोक नहीं होता, फिर भय कहां से होगा?

तण्हाय जायती सोको, तण्हाय जायती भयं
तण्हाय विप्पमुत्तस्स
, नत्थि सोको कुतो भयं.

हिंदी: (छ: द्वारों पर होने वाली) तृष्णा से शोक उत्पन होता है, तृष्णा से भय उत्पन होता है. तृष्णा से विमुक्त व्यक्ति को शोक नहीं होता, फिर भय कहां से होगा?

सीलदस्सनसम्पन्नं, धम्मट्ठं सच्चवेदिनं
अत्तनो कम्मकुब्बानं
, तं जनो कुरुते पियं.

हिंदी: जो शीलसंपन्न, सम्यक दृष्टिसंपन्न, धर्मनिष्ठ (नव प्रकार के लोकोत्तर धर्मों में स्थित, सत्यवादी, कर्तव्यपरायण है, उसे लोग प्यार करते है.

छन्दजातो अनक्खाते, मनसा च फुटो सिया
कामेसुच अप्पटिबद्धचित्तो
, उद्धंसोतोति वुच्चति.

हिंदी: जो अनाख्यात (अवर्णनीय, निर्वाण) का अभिलाषी हो, उसी में जिसका मन लगा हो, और (अनागामी मार्ग में होने से) कामभोगों में जिसका चित्त न रुंधा हो, वह ऊर्ध्वस्रोत कहा जाता है.

चिरप्पवासिं पुरिसं, दूरतो सोत्थिमागतं
ञातिमित्त सुहज्जा च
, अभिनन्दन्ति आगतं.

हिंदी: जैसे चिरकाल तक परदेस में रहने के बाद दूर देश से सकुशल घर आये पुरुसः का संबंधी, मित्र और हितैषीजन स्वातत करते है.

तथेव कतपुञ्ञम्पि, अस्मा लोकापरं गतं
पुञ्ञानि पटिगण्हन्ति
, पियं ञातीव आगतं.

हिंदी: वैसे ही पुण्यकर्मा पुरुष के इस लोक से परलोक में जाने पर उसके पुण्य उसका वैसे ही स्वागत करते है जैसे अपने प्रिय के लौटने पर उसके संबंधी उसका स्वागत करते है.


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— भवतु सब्ब मङ्गलं —

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